Chenab Bridge: एफिल टॉवर से भी ऊंचा इंजीनियरिंग का चमत्कार और प्रोफेसर माधवी लता की 17 साल की समर्पित यात्रा

Chenab Bridge: एफिल टॉवर से भी ऊंचा इंजीनियरिंग का चमत्कार और प्रोफेसर माधवी लता की 17 साल की समर्पित यात्रा

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Chinab Bridge: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उद्घाटन किया गया चिनाब ब्रिज सिर्फ एक पुल नहीं, बल्कि भारत की इंजीनियरिंग प्रतिभा और वैज्ञानिक समर्पण का प्रतीक है। यह ब्रिज न केवल तकनीकी दृष्टि से एक अद्वितीय निर्माण है, बल्कि इसके पीछे की कहानियां भी प्रेरणा से भरी हुई हैं — विशेषकर भारतीय विज्ञान संस्थान की प्रोफेसर जी माधवी लता की, जिन्होंने इस परियोजना में 17 साल तक योगदान दिया।

परियोजना में उन्हें उत्तर रेलवे द्वारा रॉक इंजीनियरिंग विशेषज्ञ के रूप में शामिल किया गया। उन्होंने निर्माण कंपनी एफकॉन्स (Afcons) के साथ मिलकर पुल की नींव और ढलानों को मज़बूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका काम विशेष रूप से मिट्टी के सुदृढ़ीकरण, शियर मेकेनिज्म की सूक्ष्म समझ और इमेज-बेस्ड तकनीकों के उपयोग पर आधारित था।

वैज्ञानिक जुनून की शुरुआत

माधवी लता का बचपन का सपना डॉक्टर बनने का था, लेकिन पारिवारिक समर्थन न मिलने के कारण उन्होंने इंजीनियरिंग की राह चुनी। बी.टेक के दौरान शिक्षकों ने उनकी रिसर्च क्षमता को पहचाना और उन्हें शोध की ओर प्रेरित किया। उनके भीतर का असली वैज्ञानिक जुनून M.Tech के दौरान सामने आया।

उनकी रिसर्च का फोकस रहा है:

  • भू-सिंथेटिक्स की सतह पर होने वाले सूक्ष्म बदलावों की पहचान
  • रॉक मास मॉडलिंग और चट्टान ढलानों व सुरंगों की स्थिरता का विश्लेषण
  • कंपोजिट रॉक स्ट्रक्चर्स की संख्यात्मक (न्यूमेरिकल) मॉडलिंग

चिनाब ब्रिज की अभूतपूर्व विशेषताएं

  • यह पुल 359 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है — जो एफिल टॉवर से भी ऊंचा है।
  • कुल लागत: 1,486 करोड़ रुपये
  • पुल की कुल लंबाई: 1,315 मीटर
  • स्टील की मुख्य आर्च: 467 मीटर लंबी — जो दुनिया की सबसे लंबी में से एक है
  • यह पुल जम्मू-कश्मीर के रियासी जिले में चिनाब नदी की घाटी पर स्थित है
  • इसे दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे आर्च ब्रिज माना जाता है

चिनाब ब्रिज सिर्फ एक इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट नहीं, बल्कि भारत की वैज्ञानिक शक्ति, तकनीकी दक्षता और महिलाओं की अग्रणी भूमिका का जीता-जागता उदाहरण है। प्रोफेसर जी माधवी लता जैसी विशेषज्ञों की गहराई से की गई रिसर्च और दीर्घकालिक समर्पण ने इस अद्वितीय संरचना को न केवल संभव, बल्कि स्थायी और सुरक्षित भी बनाया।

यह पुल अब न केवल कश्मीर को शेष भारत से जोड़ता है, बल्कि नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा का पुल भी बन चुका है।

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